शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

व्यवस्था का आपरेशन : सर्जिकल या कास्मेटिक?



लखनऊ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी, परिवार कल्याण (कल तक यही पदनाम था) डॉ. बी.पी. सिंह की हत्या के प्रकरण में विभागीय जिम्मेदारी लेते हुए नैतिकता के नाम पर दो मंत्रियों का इस्तीफा देना अच्छा लगा। जैसा कि एक वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रशांत मिश्र ने लिखा है कि मायावती ने दिखा दिया है कि उनमें निर्मम फैसले लेने की क्षमता है। वे व्यवस्था को सुधारने की कास्मेटिक नहीं सर्जिकल कार्रवाई कर सकती हैं, लेकिन यहीं पर कई सवाल उठते हैं। भ्रष्टाचार लगभग हर कहीं हैं, यह हर किसी को पता है, क्योंकि अब भ्रष्टाचारियों ने हवा-पानी को भी शुद्ध नहीं रहने दिया है। अचरज मत करिये, यह सौ फीसदी सही है। (पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाये गये तमाम कानून यदि सही तरीके से और सच्ची नीयत से लागू किये गये होते तो हमारी नदियां गंदी होतीं क्या?) नैतिकता के तकाजे से हटाये गये मंत्रियों से सिर्फ इस्तीफा क्यों लिया गया? क्या जिस सफेदपोश या उसके संरक्षण में पल रहे माफिया या माफिया गिरोहों की ओर पुलिस अफसरों के हवाले से संकेत किया जा रहा है, उन्होंने उच्चस्तरीय वरदहस्त के बिना ही करोड़ों का माल बिना माल सप्लाई किये ही अंदर कर लिया होगा? डॉ. विनोद आर्य के रूप ेमें विभाग में पहली हत्या होने पर ही यह कार्रवार्ई क्यों नहीं की गयी? इस्तीफे क्यों नहीं लिये गये? जिन फाइलों में बिना आपूर्ति भुगतान के बिंदु अब ढूंढ निकाले गये हैं, वे फाइलें क्या एक और हत्या होने के बाद ही ढूंढे जाने का इंतजार कर रही थीं, या ऊंची कुर्सियों पर बैठे लोगों को हत्या का इंतजार था। 
प्रदर्शनकारियों को पैरों तले कुचलने वाली खाकी वर्दी का जोर क्या विरोध में उठे हाथों पर ही चलता है? शायद हां, क्योंकि ऐसा नहीं होता तो पुलिस सिर्फ यह कहने के लिए एक और हत्या न होने देती कि इससे पहले हुई हत्या भी उसी हथियार से की गयी थी, हत्यारा भी वही था, इसके पीछे का सूत्रधार भी एक ही है। मरने वाले एक ही पद पर आसीन थे, यह तो अब सबको पता है। तब क्या यह अनायास है कि दोनों मंत्री हटा दिये गये। नहीं, वे तो अन्ना की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की बलि चढ़ गये। नैतिकता के तकाजे पर नहीं, छवि सुधार के लिए उन्हें रुखसत किया गया। नैतिकता का जरा भी तकाजा होता तो कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रीता बहुगुणा जोशी का घर  फूंकने वाले विधायक बबलू से मिलने के लिए लखनऊ मॉडल जेल में लाल-नीली बत्तीधारियों का रेला न पहुंचता। जेल में रहते हुए ही विधायक के नाम अगले विधानसभा चुनाव के लिए टिकट का ऐलान न हो जाता। याद करिये कि बब्लू की गिरफ्तारी भी सीबीसीआईडी के जरिये तब करायी गयी, जब सीबीआई जांच की आशंका वास्तविकता बनने का खतरा पैदा हो गया था।  
जिस कुर्सी के रसूख और पैसा खर्च करने की क्षमता का बंटवारा कर सीएमओ परिवार कल्याण की कुर्सी बनायी गयी थी, लखनऊ सीएमओ की उसी कुर्सी पर बैठे डॉ. ए.के. शुक्ल की भूमिका के बारे में डॉ. विनोद आर्य की हत्या के बाद ही क्यों नहीं तफ्तीश की गयी? बहरहाल, सवाल बहुत हैं, खाकी वर्दी और खद्दर के कुर्ते शायद ही इनके जवाब दे पायें? आप बतायें आप क्या सोचते हैं? यह कार्रवाई सर्जिकल है या कास्मेटिक?

2 टिप्‍पणियां:

  1. लंबे समय के बाद आपको पढ़ा सुखद लगा। बेहतरीन

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  2. भाई अशोक सिंह जी, सादर नमन।
    आपके ब्लाग को देखकर काफी प्रसन्नता हुई। आपने लिखा भी अच्छा है। मैं भी आपका सहयात्री होने का इच्छुक हूं ब्लागिंग की दुनिया में। अगर आप अनुमति दें, तो मैं भी अपनी रचनाएं आपको भेजा करूं। हालांकि मेरा अपना भी ब्लाग है कतरब्योंत जिस पर आप भी अपनी रचनाएं भेज सकते हैं।

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