सोमवार, 11 अप्रैल 2011

क्रिकेट की चमक में धूमिल अन्य खेल


डा. दिलीप अग्निहोत्री 
किसी भी क्षेत्र में देश की विजय आनंदित करती है। इससे उत्साह बढऩा स्वाभाविक है। यह स्वत: स्फूर्त राष्ट्रीय भाव है। यह कुछ खिलाडिय़ों की नहीं, देश की विजय मानी जाती है। क्रिकेट में भी यही हुआ। विश्व कप भारत को मिला। लोगों ने जश्न मनाया। जिन्हें खेल के रूप में क्रिकेट से कोई लगाव नहीं था, वे भी विश्व कप भारत आने से खुश थे। पूरा देश एकजुट था। सर्वधर्म प्रार्थनाएं हुईं। जीत की दुआएं मांगी गयीं। एकता की मिसाल दिखी। बेशक देश में एकजुट होकर विजेता बनाने का जज्बा है, लेकिन अन्य सन्दर्भों में विचार करते हैं, तो क्रिकेट के प्रति यह दीवानगी न्यायसंगत नहीं लगती। यह देश की खेल नीति को चिढाती हुई लगती है। 
पसंद-नापसंद व्यक्तिगत मामला है। लोगों को अपनी पसंद और उसके अनुरूप ख़ुशी व्यक्त करने का अधिकार है। खराब खेल पर वे नाराजगी का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन देश की प्रतिष्ठ केवल क्रिकेट से नहीं बढ़ती। अन्य खेल भी है, राष्ट्रमंडल, एशियाई, व अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं होती हैं। इस स्तर पर क्रिकेट कहां ठहरता है। ओलम्पिक में 190 से अधिक देश भाग लेते हैं। उसकी पदक तालिका में भारत किस स्थान पर रहता है? यदि क्रिकेट का विश्वकप राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ाता है, तो ओलम्पिक, एशियाड की पदक तालिका से कोई फर्क क्यों नहीं पड़ता? हमारे महानगरों की आबादी वाले बहुत छोटे देशों से भी पिछड़ जाने की शर्मिंदगी क्यों नहीं होती? यदि होती है तो समाज और सरकार उससे मुक्त होने के लिए क्या कर रही हैं? हाकी और फुटबाल को हमारी उदासीनता बहुत पीछे  छोड़ आयी है। क्रिकेट की चकाचौंध में ये खेल पूरी तरह उपेक्षित हो चुके हैं। इसके खिलाड़ी निराश हैं। उनके प्रोत्साहन के लिए समाज और सरकार ने अपने दायित्व नहीं निभाये। 
क्रिकेट के प्रति लोगों की पसंद का सम्मान करते हुए अनेक तथ्यों पर विचार करना होगा। कितने देशों में क्रिकेट का ज्वार है? इसके बीच क्या समानता है? भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश  न्यूजीलैंड, वेस्टइंडीज, दक्षिण अफ्रीका ब्रिटेन के गुलाम रहे हैं। श्रीलंका भारत का पड़ोसी है। ऑस्ट्रेलिया में यूरोप खास तौर से ब्रिटेन के लोग ही बसे हैं। क्रिकेट के प्रति गंभीरता दिखाने वाले 10 देश भी नहीं है। इसके विश्व कप से हम कितने खुश हैं, पर इससे 10-20 गुनी बड़ी प्रतियोगिताओं की जीत हमें इतना उत्साहित नहीं करती?  
हाकी में भी कभी देश विश्वविजेता था। क्रिकेट के मुकाबले बहुत अधिक देशों को हराकर भारत ने हाकी में जगह बनायी थी। हाकी हाशिये पर क्यों है? क्या हम उसके खिलाडिय़ों का उत्साह बढ़ा सके? क्या हम उन्हें बता सके कि क्रिकेट खिलाडियों के मुकाबले आपका महत्व कम नहीं है? पश्चिम बंगाल की फुटबाल शानदार थी। राष्ट्रीय स्तर पर हमने उनको कितना महत्व दिया? उसके खिलाडिय़ों के उत्साहवर्धन के लिए हमने क्या किया? जिम्नास्टिक, दौड़, कूद, भालाफेंक, गोलाफेंक जैसे खेलों की क्या दशा है? इनके प्रोत्साहन के लिए सरकार और समाज क्या कर रहा है? ग्रामीण क्षेत्रों में इन खेलों के विकास की अपर सम्भावनाएं हैं, पर इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। क्रिकेट के ग्लैमर के सामने सब कुछ फीका है। अन्य खेलों के विकास का माहौल गायब है। 
अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं की पदक तालिका में शानदार स्थान बनाने वाले अमेरिका, चीन, रूस, जापान, जर्मनी जैसे देशों की नीति अलग है, क्रिकेट को महत्व न देने के कारण वहां अन्य खेलों का विकास हुआ। दौड़-कूद का अभ्यास आसान है। गरीब भारत की यही खेल नीति होनी चाहिए। गांवों में प्रतिभाएं हैं, पर प्रोत्साहन एवं तैयारी की व्यवस्था नहीं है। इसके बावजूद कोई खिलाड़ी इन खेलों की सैकड़ों देशों की स्पर्धा में स्वर्ण जीत ले तो उसे हम क्रिकेट खिलाडियों के मुकाबले कितना महत्व देते हैं?
क्रिकेट का महिमामंडन खिलाडियों की नायक के रूप में प्रतिष्ठा, धन वर्षा  ने अन्य खेलों के खिलाडिय़ों को अवसाद में पहुंचा दिया है, उत्साह घटा है। होनहार बच्चे क्रिकेट की महिमा देखकर उसी की तरफ आकर्षित होते हैं व उसी का सपना देखते हैं, इस खेल के आस-पास विज्ञापनों में दिखना चाहते है व हिरोइन संग ठुमकना चाहते हैं। 
देश अपने कैसे-कैसे नायक स्थापित कर रहा है, बच्चो की कॉपियों पर राणा प्रताप, शिवाजी, लक्ष्मीबाई के चित्र वरसो पहले नदारद हो चुके है, इसकी जगह फिल्मी व क्रिकेट जगत के नायक प्रतिष्ठित है। अपवाद छोड़ दें तो ये सब अपने वैभव ग्लैमर में मग्न है, इनके सामाजिक सरोकार नहीं हैं? ये क्रिकेट और विज्ञापनों के बाजार में ही जीना चाहते है।  
यदि क्रिकेट की जीत राष्ट्र गौरव बढ़ाती है तो ओलम्पिक-एशियाड की पदक तालिका देख कर शर्म भी आनी चाहिए। समाज और सरकार दोनों को इस सम्बन्ध में अपना दायित्व समझना चाहिए। 


(लेखक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री विद्यांत हिन्दू डिग्री कालेज में राजनीति शास्त्र विभाग में एसोसिएट  प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है

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