मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

...बगुला मोती खायेगा

अशोक कुमार सिंह
माहौल में विधानसभा चुनावों की आहट जरूर है, लेकिन चुनाव इतने नजदीक भी नहीं दिखते, पर वोटों की ठेकेदारी करने वाले अभी से अलग-अलग पार्टियों के समक्ष वोटों की अपनी खेती का रकबा बताते हुए सप्लाई का ठेका पाने की जुगत में लग गये हैं। कहीं, पर पुरस्कार के रूप में तो कहीं इस डर से कि टिकटों की बंदरबांट वाली इस दौड़ में कहीं अपना भी कोई सिपाही शामिल न हो जाये, इसलिए पार्टियां भी उनके नामों की घोषणा की तैयारी में लग गयी हैं। इसी के साथ दलबदल भी शुरू हो गयी है। कल तक जो प्यारे थे, श्रद्धा के केंद्र दिखते थे, जिनके दम पर लोकतंत्र को बचाये रखने की कसमें खायी जा रही थीं, उनमें अचानक कमियां दिखने लगीं। लोकतंत्र खतरे में नजर आने लगा और इसी के साथ थाली के बैंगन या बेपेंदी के लोटे लुढ़कने लगे हैं। रुकेंगे कहां कौन जाने?
शुरुआत विधानसभा चुनाव से पहले होने वाले संभवतया आखिरी उपचुनाव से करते हैं। यह उपचुनाव गोरखपुर जिले की पिपराइच विधानसभा सीट के लिए होना है, जो बसपा सरकार में मंत्री रहे जमुना प्रसाद निषाद के निधन से खाली हुई है। बसपा ने घोषित तौर पर अपने को प्रदेश में हुए किसी भी उपचुनाव से अलग रखा। पिपराइच के लिए भी उसकी यही नीति थी, पर स्व. निषाद की पत्नी राजमती वहां से हर हाल में चुनाव लडऩे की इच्छुक थीं, पार्टी टिकट न दे तो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर। इस जिद के चलते बसपा से बाहर की गयीं तो पुत्र अमरेंद्र के साथ सपा में शामिल हो गयीं। 8 अप्रैल को सपा महासचिव शिवपाल सिंह यादव और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मां-बेटे को उनके कई समर्थकों के साथ पार्टी की सदस्यता प्रदान की। 
सपा को अचानक श्रीमती निषाद से प्रेम नहीं हो गया। पार्टी को लगा कि बसपा चुनाव लड़ ही नहीं रही है। मुकाबला विपक्षी दलों के बीच ही होना है तो फिर श्री निषाद के निधन से पैदा सहानुभूति का फायदा क्यों न उठाया जाये? 
इस तरह हाथी से उतारी गयीं पिपराइच की राजमती निषाद और उनके पुत्र सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के प्रति निष्ठा जताते हुए साइकिल पर सवार हो गये। उनके साथ गोरखपुर के संतोष यादव, राम मिलन यादव, चन्द्रपाल यादव, राम नगीना साहनी, शहाब अंसारी (नगर अध्यक्ष) मनोरंजन यादव, अखण्ड प्रताप सिंह, आरिफ हाशमी, हरि यादव, अजीतमणि त्रिपाठी, जगदीश यादव, कृष्ण कुमार त्रिपाठी, सी.पी. चन्द, राजमन यादव, रामप्रीत यादव, दुर्गेश यादव, संजय पासवान व रजनीश भी साइकिल के कैरियर पर बैठ गये।  
श्रीमती निषाद का यह हृदय परिवर्तन यूं ही नहीं हो गया। टिकट की गारंटी ने उन्हें पाला बदलने को मजबूर किया। एक-दो दिन में सपा उन्हें पिपराइच से टिकट दे दे तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। इन्हें टिकट चाहिए, उन्हें सहानुभूति की लहर पर चलकर झोली में आती एक सीट। इस सियासी समझौते में घाटा किसी का नहीं। चुनाव लडऩा ही था, बसपा ने निकाल दिया तो क्या? जो टिकट दे, निष्ठा उसी के प्रति। जय हो सियासत की। 
भाजपा में शामिल
सपा ने कुछ लोगों को पार्टी में शामिल किया तो भाजपा कैसे चूकती। उसने एक दिन पहले ही खलीलाबाद के पूर्व ब्लाक प्रमुख दिग्विजय नारायण चौबे के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों को सदस्यता दी। इनमें ज्येष्ठ ुउप प्रमुख श्रीपत यादव, कनिष्ठ उप प्रमुख संतोष पाठक, प्रधान रामाशीष उपाध्याय, अवधेश सिंह, मोनू सिंह, रामधीन मौर्य, अभयानन्द सिंह, अमरनाथ उपाध्याय, प्रकाश प्रधान, पूर्व प्रधान अलोपी यादव, हरविन्दर सिंह, बीडीसी सचिन सिंह, राज सिंह, इन्द्र बहादुर सिंह, मनोज पाण्डेय, बलराम यादव और पूर्व बी.डी.सी. कमलेश सिंह व राजू पाण्डेय शामिल थे। 

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