गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

पिछड़े मुस्लिम समाज में खुदमुख्तारी की छटपटाहट


पसमांदा मुस्लिम समाज ने किया ताकत का प्रदर्शन 
बदतरी की वजह मुस्लिम नेता और उलेमा: अनीस
लखनऊ में गुरुवार को आयोजित पसमांदा अधिकार सम्मेलन
में अनीस मंसूरी व पसमांदा समाज के अन्य नेता
  


अशोक कुमार सिंह
लखनऊ, 13 अक्टूबर: 
अपने वोटों से दूसरों के लिए ताज खरीदकर खुद भूखे-नंगे रह जाने की पीड़ा क्या होती है, पसमांदा मुस्लिम समाज से ज्यादा भला कौन समझ सकता है। सत्ता में और सत्ता लपकने के लिए विविध रूप धर कर तैयार बैठी सियासी जमात की तिकड़मों के कारण, हाड़-मांस वाले जीते जागते इन्सान की बजाय वोट बैंक में तब्दील हो जाने की विडम्बना भी इनसे ज्यादा किसकी तकदीर में है। हर पांच साल में इनकी एकजुटता को सियासी दलों के पास गिरवी रखकर अपने और कुनबे के लिए लिये चंद कुर्सियों का जुगाड़ करने वाले ‘बड़े मुस्लिम नेता’ और उलेमा का चोला पहनकर सियासत में सियासतदां को भी मात करने वालों ने पसमांदा मुस्लिम समाज को बस इस लायक रखा कि वे जिन्दा रहें और उनके पक्ष में या उनके कहने पर वोट देते रहें, पर धीरे-धीरे ही सही, यह समाज जाग गया है। उसके अन्दर खुद मुख्तार बनने की इच्छा छटपटाहट में बदलने लगी है। यही छटपटाहट उसे गुरुवार को लखनऊ में झूलेलाल वाटिका तक ले आयी, जहां मुस्लिम पिछड़ी बिरादरियों की समाजी तंजीम ‘पसमांदा मुस्लिम समाज’ ने इन वंचितों को उनका हक दिलाने के लिए पसमांदा अधिकार सम्मेलन का आयोजन किया था। 
यह सम्मेलन इस भाव-भूमि पर आयोजित किया गया था कि ‘वोट हमारा राज तुम्हारा’ नहीं चलेगा। पसमांदा समाज का वोट वही लेगा जो पसमांदा समाज का काम करेगा। उसको सारे हक और सभी क्षेत्रों में भागीदारी देगा। कभी वोट के नाम पर कभी धर्म के नाम पर, कभी चुनावी वादों में तो कभी जमात के जमावड़ों में, बहलाव-फुसलाव नहीं चलेगा। इतनी भीड़ देख सम्मेलन में आया हर शख्स चकित था, अरे हमारी संख्या तो इतनी ज्यादा है, फिर हम कमजोर क्यों, पिछलग्गू क्यों, क्यों किसी और के सिर सेहरा बांधें। पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीस मंसूरी ने तो साफ-साफ कह भी दिया कि पसमांदा मुसलमानों की बदतर स्थिति के लिए मुस्लिम बड़े नेता और तथाकथित सियासी उलेमा जिम्मेदार हैं। इन लोगों ने स्वार्थ के चलते कभी भी पिछड़े मुसलमानों की आवाज नहीं उठायी, जिसका नतीजा है कि पिछड़ों की हालत बदतर होती चली गयी। 
भारी जमावड़े पर खुशी जाहिर करते हुए अनीस ने सवाल किया कि जब सच्चर कमेटी यह प्रमाणपत्र दे चुकी है कि देश के मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी बदतर है, तो यूपीए सरकार पिछड़े मुसलमानों के उत्थान के लिए किस मुहूर्त का इंतजार कर रही है। केन्द्र को चाहिए कि वह पिछड़े मुलसमानों के विकास के लिए दलितों की तर्ज पर विकास योजनाएं बनाये। अनीस ने कहा कि जब तक सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ पिछड़े मुसलमानों तक नहीं पहंुचेगा, तब तक उनके उत्थान की बात बेमानी होगी।
उन्होंने कहा कि पिछड़े मुसलमानों की बदतर हालत के लिए सियासी दल, खासकर कांग्रेस जिम्मेदार है, जिसने केन्द्र और प्रदेश में सबसे ज्यादा समय तक राज किया। सत्तारूढ़ दलों में कथित बड़े मुस्लिम नेताओं ने साजिश करके मुसलमानों की समस्याएं नहीं रखीं। बसपा नेता और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन के बारे में उन्होंने कहा कि जिस मंत्री के पास 14 विभाग हों वह अपनी बिरादरी के लिए कुछ न करे, बड़े शर्म और अफसोस की बात है। उन्होंने कहा कि मुसलमानों में कुल 40 बिरादरियां है, जिनमें से 36 पिछड़ी हैं। यही 36 बिरादरिया हक और सत्ता में हिस्सेदारी के लिए आज लखनऊ में इकट्ठा हुई हैं। वे धोखा देने वालों को पहचान गये हैं और विधानसभा चुनाव में इसका जवाब देंगे। छले जाने की कसक जबान पर चली आयी। उन्होंने कहा कि मुसलमानों की कुल आबादी का 85 प्रतिशत पिछड़ा है, जिसे छला गया है। शेष 15 प्रतिशत हर तरह के लाभ लेता रहा। उन्होंने मांग की कि केन्द्र संविधान के अनुच्छेद 341 पर लगे धार्मिक प्रतिबंध को समाप्त कर 1950 से पूर्व की स्थिति बहाल करे, ताकि 2012 में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों में पिछड़े मुसलमान भी सुरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ सकें। 
प्रदेश अध्यक्ष, वसीम राईनी, लन्दन से शिरकत करने पहंुचे मौलाना ईसा मंसूरी, राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष मुख्तार मंसूरी, अब्दुल नईम इदरीसी व एहरार कुरैशी, अंजुम अली सहित कई नेताओं ने मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए सियासी बेईमानी को जिम्मेदार बताते हुए इसके खिलाफ एकजुट संघर्ष का आह्वान किया। 


लखनऊ में गुरुवार को आयोजित पसमांदा अधिकार
सम्मेलन में उपस्थित पसमांदा समाज के लोग
अनीस का आरोप 
रोकी गयी भीड़ 
लखनऊ, 13 अक्तूबर:
पसमांदा मुस्लिम समाज के अध्यक्ष अनीस मंसूरी ने सम्मेलन के मंच से कैबिनेट मंत्री नसीमुददीन सिददीकी पर आरोप लगाये। उन्होंने कहा कि मंत्री ने रैली असफल करने के लिए जी-जान से कोशिश की। दो महीने नाच नचाने के बाद महारैली की अनुमति दी गयी। सम्मेलन में आ रहे लोगों की बसों को राजधानी में कई जगहों पर रोका गया। जितनी भीड़ यहां मौजूद है उतनी ही भीड़ प्रशासन ने रोक ली नहीं, वरना यहां तिल रखने की भी जगह न होती। उन्होंने बताया कि सरकार के नुमाइंदों ने यहां खाना बनाने और बाहर से मंगाने पर भी रोक लगा दी।


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